
भारत में आज 15वें उपराष्ट्रपति के लिए मतदान है। और भले ही ये चुनाव दिखता हो “सीधा-सपाट”, असल में इसमें वो सारे तड़के हैं जो एक मसालेदार राजनीतिक ड्रामा में होते हैं — गणित, गुटबाज़ी, गुमराह रणनीति, और गांधीजी के चश्मे के पीछे से झांकती गुपचुप क्रॉस वोटिंग।
जादुई आंकड़ा: जहां नंबर बोलते हैं और बाकी चुप रहते हैं
कुल वोटर: 781 सांसद
आवश्यक बहुमत: 391
लेकिन वोटिंग में भाग नहीं ले रहे हैं: BJD, BRS, अकाली दल
बचे सांसद: 669
नई जादुई संख्या: 385
तो अब जो भी 385 पार कर गया, वही देश का डिप्टी प्रेसिडेंट, यानी उपराष्ट्रपति।
NDA के उम्मीदवार: सीपी राधाकृष्णन – ‘सरकारी’ गणराज्य के स्वघोषित उत्तराधिकारी
महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु BJP के दिग्गज सीपी राधाकृष्णन NDA के उम्मीदवार हैं। संघ की पाठशाला से निकले, मोदी-शाह के प्रिय, और एक ऐसे चेहरे जो बिना कैमरे की परवाह किए अनुशासन का पाठ पढ़ते हैं।
अगर चुने जाते हैं, तो तमिलनाडु से तीसरे उपराष्ट्रपति बनेंगे — राधाकृष्णन, वेंकटरमन के बाद।
विपक्ष के खिलाड़ी: जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी – संविधान के पहरेदार या सियासत का नया जजमेंट?
इंडिया गठबंधन ने मैदान में उतारा है सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को। विपक्ष इसे पेश कर रहा है “RSS बनाम संविधान की लड़ाई” के तौर पर।
“हम जनता के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं!” – विपक्ष
“हम जीतने के लिए लड़ रहे हैं!” – NDA
“हम वोट ही नहीं करेंगे!” – BJD, BRS, SAD
आंकड़ों की कुश्ती: मैच तो फिक्स दिख रहा है… लेकिन दिलचस्पी बनी हुई है
| पक्ष | वोटों की ताकत |
|---|---|
| NDA (BJP + Allies + YSRCP) | 436 वोट |
| INDIA Alliance | 324 वोट |
| क्रॉस वोटिंग की उम्मीद | विपक्ष को आशा, NDA को आश्वासन |
| निष्क्रिय दल | 12 वोट (नदारद) |
फाइनल स्कोरलाइन की झलक:
NDA जीत के लिए बस बैठे हैं, विपक्ष ‘संविधान का चश्मा’ पहनकर मैदान में खड़ा है।
ड्रामा में ट्विस्ट: जब तेलगू, तिरंगा और ट्रेंडिंग हैशटैग सब मिले!
कुछ सांसदों का स्टैंड अब भी Facebook relationship status जैसा है — “It’s Complicated”। स्वाति मालीवाल (AAP) हों या और कुछ निर्दलीय — कुछ भी कह सकते हैं, कर कुछ और सकते हैं।
तो आखिर जीत किसकी? लोकतंत्र की… या केवल NDA की?
सिर्फ आंकड़ों में बात करें, तो राधाकृष्णन की जीत लगभग Confirmed है। लेकिन राजनीति में “लगभग” भी कई बार उलझन बन जाता है — जैसे रूमाल में लिपटा झटका।
संसद में तो वोटिंग हो रही है, लेकिन ट्विटर पर उपराष्ट्रपति पहले ही तय हो चुके हैं।
एक पक्ष संविधान बचा रहा है, दूसरा बहुमत।
जनता देख रही है – OTT एपिसोड की तरह, जिसमें नया सीज़न हर 5 साल बाद आता है।
उपराष्ट्रपति तो मिल जाएगा, लेकिन विपक्ष को क्या मिलेगा?
हो सकता है राधाकृष्णन आज के हीरो बन जाएं, पर सुदर्शन रेड्डी विपक्ष की नैरेटिव बिल्डिंग में रोल निभा चुके हैं।
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